यूरोप को पिछले 10 सालों से मैं बदलता हुआ देख रहा हूँ चाहे वह ख़ान पान का तरीक़ा हो या जीवनशैली का। ख़ैर आज मैं यहाँ खानपान के बारे में बात करूँगा. जब 10 साल पहले (सितम्बर 2012 घायल है)मै अपने स्नातकोत्तर के लिए जर्मनी आया था तब से आज 2022 तक हांगकांग से लेकर सुपरमार्केट बिकने वाला सब कुछ बदल चुका था। जहां कभी Supermarket में मांसाहारी उत्पाद ही मिलते थे और शाकाहारी उत्पादों का अकाल पड़ा रहता था, वहीं 2022 में समीकरण पूरी तरहा से बदल चुका था। यूरोप में शाकाहार और म Vegan संस्कृति पूरी तरह से पैर पसार चुका था। यूरोप की मिलेनियल और Genz पीढ़ी का झुकाव पूरी तरह से शाकाहारी और Vegan उत्पादों की तरफ़ बढ़ चुका था. तभी तो जहां 2012 में शाकाहारी उत्पाद सुपरमार्केट में 20 % रहता था आज वो बढ़कर का 50% हो चुका था एक भारतीय होने के नाते लिए यह आश्चर्य जनक था पर अतिशयक्तों नहीं! यह आश्चर्य जनक था पर अतिशयोक्ति नहीं क्योंकि मांस-महली से नयी पीढ़ी का स्वाभाविक था. यूरोप की यह नई पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ी के मांसाहारी परंपरा को तोड़कर आज़ाद होना चाहती थी. जो भारत के ऋषि मुनियों ने आयुर्वेद में लिख रहा था,
Interaction with students in a primary school at village, Jamalpur During the pandemic, time world has changed a lot and it affected millions of lives in a severe way. Lower middle-class people and daily wage workers' lives have become worse in India. Though the government did its best to help the people and provided them free food, medical services but still educational support was not even there. Due to the loss of the job the affected families were not able to financially support the education of their children, hence putting children's future in the dark. The most affected students were from rural areas and small cities where jobs were completely perished because of pandemics. Hence we have run the following initiative during the pandemic 1. Connect to grow : During this time our non-profit organization started to connect to grow the program. Under this initiative, we started making collaboration with other non-profit organizations working in the sma